उत्थान, एक यात्रा…
मिलन कुमार सैनिक
व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक विकास और आर्थिक उत्थान को व्यक्ति के कल्याण के रूप में देखा जाता है। परिवार की समृद्धि, प्रगति, रोटी, कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाएं हासिल होने को परिवार के कल्याण के रूप में देखा जाता है। सामाजिक व्यवस्थाएं, लोकहित में होने पर समाज कल्याण का आधार बनती हैं। ऐसे ही राष्ट्र हित के मद्देनजर उठे हर कदम में राष्ट्रीय कल्याण की सुनिश्चितता को देखा जाता है यानी व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र का हर पहलू कल्याण के लिए प्रतीक्षारत है।
कल्याण की इस बाहरी यात्रा के समानांतर ही एक आंतरिक यात्रा भी सतत जारी रहती है, जिसका ध्येय है आत्मा का कल्याण सुनिश्चित करना। बाहरी यात्रा के कल्याण में यदि कोई अभाव रह जाए तो भी जीवन यात्रा संपन्न हो सकती है लेकिन आत्मिक कल्याण के अभाव में जन्म-दर-जन्म कम पड़ने लगते हैं और जन्म-मृत्यु का चक्र सतत बना रहता है।
कल्याण की इस बाहरी यात्रा में अनेक मित्र, सम्बन्धी, मार्गदर्शक, हमसफर, हमदर्द आदि सहायक हो सकते हैं लेकिन कल्याण की आन्तरिक यात्रा का मात्र एक सत्गुरु ही सहयोगी होता है। सत्गुरु द्वारा प्रदत्त ब्रह्मज्ञान की रोशनी में सत्गुरु के सान्निध्य और मार्गदर्शन में ही आत्मिक कल्याण की यात्रा पूर्ण करना सम्भव है। सत्गुरु, बाहरी और आंतरिक दोनों ही यात्राओं में मार्गदर्शक बन जाते हैं।