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झारखंड: भाजपा के लिए विधानसभा चुनाव में आसान नहीं सीटों का बंटवारा

रांची। सरयू राय के बड़े दांव से आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो की टेंशन दोहरी हो गयी है. सुदेश महतो पहले से ही झारखंड की राजनीति में एक नए कुरमी टाइगर जयराम महतो के उदय से टेंशन में हैं, वहीं अब सरयू राय के अचानक जदयू में शामिल होने के बाद झारखंड में जदयू की भी राजनीतिक तपीश बढ़ गयी है।
जदयू फिलहाल झारखंड में विधायक विहीन पार्टी के रूप में जानी जा रही थी, मगर सरयू राय के आ आने से पार्टी को बैठे बिठाए एक विधायक मिल गया है, वहीं पार्टी का एक राज्यसभा सांसद भी खीरू महतो के रूप में है. आने वाले विधानसभा में नीतीश कुमार और सरयू राय ने बड़े खेल की तैयारी शुरू कर दी है. कल तक राजनीतिक रूप से कमजोर संगठन के रूप में माने जाने वाले जदयू संगठन में अचानक से प्राण वायु आ गई है.

  • अब आजसू 20-25 सीटों पर कैसे करेगी दावेदारी

सरयू राय के पार्टी में आने से सीटों का समीकरण भी अचानक से बदला-बदला नजर आ रहा है. जदयू का वोट बैंक कुर्मी और कोयरी- महतो के बीच ही रहा है. मगर सरयू के आने से धनबाद, जमशेदपुर और बोकारो में पार्टी की दावेदारी मजबूत हुई है. सरयू के आने के पूर्व ही जदयू हजारीबाग, रामगढ़, मांडू, डुमरी, टुंडी आदि सीटों पर दावेदारी कर रहा था. अब सरयू राय के आने के बाद धनबाद, बोकारो और जमशेदपुर की भी कई सीटों पर जदयू दावेदारी कर सकता है. जानकारी के अनुसार जदयू कम से कम 11 सीटों पर दावेदारी करेगा.

वहीं आजसू ने भी पहले से 20 से 25 सीटों पर दावेदारी का मन बना रखा है. ये भी बातें सामने आई हैं कि सुदेश महतो केंद्रीय मंत्रिमंडल में आजसू को बर्थ नहीं मिलने पर इसी शर्त पर तैयार हुए कि विधानसभा चुनाव में भाजपा उन्हें सम्मान देगी. अब यह सम्मान कितनी सीट तक रहेगा, यह भी आने वाले दिनों में पता चलेगा.

  • भाजपा रघुवर की सीट सरयू के लिए छोड़ेगी !

अभी यह तय नहीं है कि सरयू राय अपनी पुरानी सीट जमशेदपुर पश्चिम से चुनाव लड़ते है या मौजूदा जमशेदपुर पूर्वी से. क्योंकि 2019 के चुनाव में सरयू राय ने अपना सीट बदल कर पूर्व सीएम रघुवर दास की सीट जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव मैदान में उतर गए थे. राय का मकसद रघुवर दास को हराना था, जिसमें वे सफल भी हुए. मगर राय की परंपरागत सीट तो जमशेदपुर पश्चिम ही है. जहां से अभी बन्ना गुप्ता विधायक हैं.

एनसीपी शिंदे गुट अब एनडीए का हिस्सा है. इस लिहाज से कमलेश सिंह अब साथी विधायक हैं. इसलिए भाजपा को पहले से हुसैनाबाद सीट कमलेश सिंह के लिए छोड़नी होगी. ऐसे में भाजपा को अब दो-दो अन्य सहयोगी दलों को संतुष्ट कर पाना बेहद कठिन टॉस्क के रूप में नजर आ रहा है.

  • भाजपा 65 से कम पर नहीं होगी तैयार

भाजपा खेमे से मिली जानकारी के अनुसार हुसैनाबाद सीट को छोड़ कर कुल 80 सीटें बचती हैं. ऐसे में भाजपा 80 में से कम से कम 65 सीट से कम पर समझौता करने को तैयार नहीं होगी. ऐसे में आजसू पार्टी और जदयू को कम सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है. आजसू 20 से कम पर तैयार होगी, इसकी संभावना भी कम है. क्योंकि 2019 में आजसू ने 20 सीट मांगी थी, भाजपा 18 देने को तैयार भी थी. मगर आजसू तैयार नहीं हुई और गठबंधन टूट गया।

भाजपा और आजसू अलग-अगल चुनाव लड़े, जिसका खमियाजा दोनों को उठाना पड़ा. भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी. कम से कम 13 ऐसी सीटें 2019 में रहीं, जहां पर दोनों दलों के वोट बिखराव के कारण यूपीए ने बाजी मार ली. इसलिए क्या इस बार भाजपा और आजसू पार्टी पुरानी गलती दोहाराने को तैयार होंगे, देखना होगा।

साभार : शुभम संदेश

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