Meena Kumari Birthday : दर्द भरी है ‘महजबीन’ के मीना कुमारी बनने की दास्तां, अदाकारी ऐसी कि डाकुओं का सरगना भी था दीवाना
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‘चलते-चलते यूं ही कोई मिल गया था…सरेराह चलते चलते…’ गुजरे जमाने की फिल्म पाकीजा का ये गाना सुनकर आप समझ तो गए ही होंगे कि आज हम किसकी बात करने जा रहे हैं। बीते जमाने की बेहद खूबसूरत और मशहूर अदाकारा मीना कुमारी की। अपने 30 साल करियर में 90 से ज्यादा फिल्में करने वाली इस अदाकारा के चाहने वाले सिर्फ आम इंसान ही नहीं बल्कि डाकू भी थे।
बॉलीवुड की ट्रेजडी क्वीन मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1993 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता अली बख्श मुस्लिम और मां बंगाली क्रिश्चिन थीं। माता-पिता ने इनका नाम महजबीन रखा था। महजबीन यानि मीना कुमारी के पिता अपनी दूसरी औलाद बेटा चाहते थे, लेकिन इनका जन्म हो गया। जिससे उनके पिता बेहद दुखी थे। मीना के जन्म के बाद माता-पिता के पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे नहीं थे, तो वह उनको किसी अनाथालय के बाहर छोड़ आए। लेकिन बाद में पिता का मन नहीं माना तो वह बच्ची को वापस गोद में उठा लाए।
कम उम्र में ही मीना कुमारी ने एक्टिंग की दुनिया में कदम रख दिया था। बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट उनकी पहली फिल्म ‘लेदरफेस’ थी, जो कि सन् 1939 में रिलीज हुई थी। कहते हैं कि पहले दिन इस फिल्म के लिए मीना कुमारी को फीस के रूप में 25 रुपये मिले थे। इसके बाद उन्होंने बैजू बावरा, फूल और पत्थर, परिणीता, मेरे अपने, साझ और सवेरा, दो बीघा जमीन, दिल अपना और प्रीत पाराई, साहब बीवी और गुलाम, पाकीजा समेत करीब 90 से अधिक फिल्मों में काम किया। उनके करियर की अंतिम फिल्म ‘पाकीजा’ थी।
ट्रेजडी क्वीन ने अपने जीवन में कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन उनको बैजू बावरा के लिए बेस्ट अभिनेत्री का फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला। उस दौर में ये पुरस्कार पाने वाली वह पहली अभिनेत्री थी। मीना कुमारी का फिल्मी करियर भले ही चमकते हुए सितारे की तरह रहा हो, लेकिन उनकी निजी जिंदगी अंधेरे और दुखों से भरी हुई थी, लेकिन कमाल अमरोही का मीना के जीवन में आना किसी बड़ी खुशी से कम नहीं था। दरअसल एक बार मीना कुमारी एक अंग्रेजी मैग्जीन पढ़ रही थीं, तभी उनकी नजर एक तस्वीर पर पड़ी और ये तस्वीर थी कमाल अमरोही की। बस फिर क्या था, मीना कुमारी कमाल अमरोही को दिल दे बैठीं और यहीं से दोनों की मोहब्बत के अफसाने शुरू हो गए।
दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार की फिल्म तमाशा की शूटिंग चल रही थी। इसी फिल्म के सेट पर अशोक कुमार ने कमाल अमरोही से मीना कुमारी की मुलाकात कराई। मुलाकात के बाद कमाल ने मीना को अपनी अगली फिल्म के लिए साइन कर लिया। 21 मई 1951 को महाबलेश्वर से मुंबई लौटते वक्त मीना कुमारी की गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया और बाएं हाथ की छोटी उंगली टूट गई। इस हादसे के बाद उन्हें काफी समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। उंगली टूटने के कारण उसका शेप गोल हो गया था, इस वजह से बेहतरीन अदाकारा पर्दे के सामने हमेशा अपना हाथ दुपट्टे से ढककर रखती थी।
मीना और कमाल का प्यार परवान चढ़ाता गया और मीना ने 14 फरवरी 1952 को दो बच्चों के पिता कमाल से शादी रचा ली। मीना कमाल को प्यार से चंदन कहती थीं और वह इनको मंजू नाम से पुकारते थे। मीना कुमारी एक सुपरस्टार बन चुकी थीं और सिनेमाई दुनिया के उभरते डायरेक्टर और निर्देशक को ये कतई बर्दाश्त नहीं था उनकी पहचान उनकी पत्नी के नाम से हो। बस फिर क्या था, दोनों के रिश्ते में खटास आने लगी और 1964 में दोनों की राहें जुदा हो गईं।
मीना कुमारी के करियर की आखिरी फिल्म पाकीजा थी। 16 जुलाई 1956 को शुरू हुई फिल्म जब 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई। इस फिल्म को बनाने में लगे इतने वक्त के पीछे की वजह मीना कुमारी और कमाल के बीच की अनबन थी। वैसे तो फिल्म पाकीजा से जुड़े इतने किस्से हैं कि उनपर एक किताबें लिखी जा चुकी हैं। कमाल से तलाक के बाद मीना कुमारी खूब शराब पीने लगीं और बीमार रहने लगीं। पाकीजा की आधी शूटिंग हो चुकी थी, दोनों के रिश्तों में खटास की वजह से फिल्म की शूटिंग अधर में लटक गई। बाद में सुनील दत्त और नरगिस नें उनको फिल्म पूरी करने के लिए मनाया।
पाकीजा को रिलीज होने में 14 साल लंबा वक्त लग गया। इस फिल्म की शूटिंग के वक्त ही मीना कुमारी बहुत बीमार रहने लगी थीं, हालात ऐसे थे कि वह सारे सीन खुद करने की स्थिति में नहीं थी। तब मीना कुमारी की डुप्लीकेट बनकर पद्मा खन्ना ने उनके तमाम रोल पूरे किए। फिल्म ‘पाकीजा’ की कहानी और कैमरे का कमाल ऐसा कि 16 जुलाई 1956 को शुरू हुई फिल्म जब 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई तो कोई भी दर्शक ये न पकड़ पाया कि परदे पर कहां असली मीना कुमारी हैं और कहां उनकी डुप्लीकेट बनकर नाचतीं पद्मा खन्ना।
चलते-चलते फिल्म पाकीजा से जुड़ा एक किस्सा और आपके साथ साझा करना चाहेंगे। दरअसल पाकीजा की शूटिंग मध्यप्रदेश के शिवपुरी में हो रही थी। शूटिंग से लौटते वक्त कमाल अमरोही की गाड़ी का पेट्रोल खत्म हो गया तो ये तय हुआ कि रात वहीं बिताई जाएगी। रात का वक्त था और सभी वहां पर सो रहे थे कि तभी अचानक से डकैतों ने धावा बोल दिया। लूटपाट के दौरान जब डाकुओं के सरगना अमृत कुमार को ये बात पता चली कि कमाल के साथ मीना कुमारी हैं तो उसने बंदूक छोड़ दी और बदले में मीना से महज एक दस्तखत यानि ऑटोग्राफ की डिमांड कर दी। मीना कुमारी को ये ऑटोग्राफ चाकू से अमृत लाल के हाथ पर गोदना पड़ा था। पाकीजा के रिलीज होने के कुछ हफ्तों के बाद ही मीना कुमारी ने 31 मार्च 1972 को दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनकी फिल्में और खूबसूरती के चर्चे आज भी लोगों की जुबां पर रहते हैं।
-Agency