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आजमगढ़ सीट पर भाजपा को जीत दोहराने और सपा को सीट छीनने की चुनौती

आजमगढ़ । लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट जीतने के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी समाजवादी पार्टी ने अपनी-अपनी गोटियां सेट करनी शुरू कर दी हैं। भाजपा के सामने जीत दोहराने और सपा के सामने खोया जनाधार हासिल करने की चुनौती है। भगवा पार्टी ने यहां से भोजपुरी कलाकर दिनेश लाल निरहुआ को एक बार फिर उम्मीदवार बनाया है। वहीं, ‘इंडिया’ गठबंधन और बसपा ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

राजनीतिक जानकर कहते हैं कि इस बार आजमगढ़ सीट पर मुकाबला कड़ा रहने वाला है। सपा ने भाजपा की घेरेबंदी के लिए बसपा के पिछले उम्मीदवार गुड्डू जमाली को अपने पाले में लाकर लड़ाई आसान कर ली है। माय के समीकरण के जरिए सपा यहां बाजी मारना चाहती है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस सीट को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे। उनका पूरा जोर यहां अन्य जातियों के साथ यादव व मुस्लिमों को पूरी तरह साधने पर है।

भाजपा ने भी यहां पर मजबूत किलेबंदी कर रखी है। चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आजमगढ़ का दौरा इस नजरिए से खासा अहमियत रखता है। पीएम 8 मार्च को मंदुरी एयरपोर्ट और महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय सहित कई बड़ी परियोजनाओं का लोकार्पण कर सकते हैं।

सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अभी ‘इंडिया’ गठबंधन उम्मीदवार तय कर रहा है। लेकिन इस बार हम लोकसभा में समीकरण के मामले में भाजपा से काफी मजबूत हो चुके हैं। शाह आलम गुड्डू जमाली 2022 में आजमगढ़ लोकसभा का उपचुनाव बसपा के टिकट पर लड़े थे। उन्हें 2.66 लाख वोट मिले थे। यह चुनाव सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव भाजपा के दिनेश यादव निरहुआ से मामूली मतों से हार गए थे। तभी से सपा नेतृत्व की नजर गुड्डू जमाली पर थी। उन्हें हम अपने दल में शामिल करा चुके हैं, जिससे आधी लड़ाई ही बची है।

उन्होंने बताया कि जमाली मुबारकपुर सीट से 2012 और 2017 में बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीत थे। पसमांदा मुस्लिम समाज से आने वाले पूर्व विधायक को विधान परिषद भेजकर अखिलेश पसमांदा मुस्लिम समाज को भी साध सकते हैं। इसके साथ ही मुस्लिम को एमएलसी बनाकर पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की अपनी मुहिम को आगे बढ़ा सकते हैं।गुड्डू जमाली के सपा में आ जाने से वहां पार्टी की राह आसान हो जाएगी। यहीं नहीं पूर्व मंत्री बलराम यादव को भी विधान परिषद भेजने की तैयारी है। पिछले साल के विधानसभा चुनाव में सपा आजमगढ़ में सारी सीटें जीत गई थीं लेकिन उसके बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने सपा को उसी के गढ़ में शिकस्त दे दी।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि आजमगढ़ यादव परिवार का गढ़ माना जाता रहा है क्योंकि यहां पर मुस्लिम और यादवों की संख्या काफी है। इसलिए यहां मुस्लिम या फिर यादव ही सांसद चुना गया है। वर्ष 1996 तथा 1999 में सपा, 2004 में बसपा और 2009 में भाजपा के टिकट पर रमाकांत यादव यहां से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। वर्ष 2014 के चुनाव में वह सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव से चुनाव हार गए थे। अगर इस सीट के इतिहास को देखें तो बसपा के टिकट पर 1998 और 2008 में अकबर अहमद डंपी सांसद बने। वर्ष 1989 से 2019 तक इस सीट पर कभी सपा तो कभी बसपा का कब्जा रहा और बीच में एक बार 1991 में जनता दल और 2009 तथा 2022 के उपचुनाव में भाजपा जीती। इस बार उसके सामने जीत दोहराने की चुनौती है। जातीय समीकरण के आधार पर देखें तो सपा को बढ़त जरूर है, लेकिन भाजपा अपने विकास और मोदी की गारंटी के दम पर चुनाव जीतने की पूरी कोशिश करेगी।

भाजपा के सांसद दिनेश लाल निरहुआ कहते हैं कि आजमगढ़ का उतना विकास कभी नहीं हुआ जितना मोदी-योगी सरकार में हुआ है। यहां संगीत महाविद्यालय, एयरपोर्ट, मेडिकल कालेज और कई सड़कें बनी हैं। इसके साथ ही आजमगढ़ में रिंग रोड बनने जा रहा है, नई रेलवे लाइन बन रही है। आजमगढ़ में मास्टर प्लान पास हो गया है।

उन्होंने दावा किया कि वह अपने पूरे कार्यकाल में आजमगढ़ की जनता के लिए हर समय मौजूद रहे हैं। मोदी की योजनाओं का लाभ सभी को मिला है। सपा चाहे जो समीकरण बना लें लेकिन वह जीत नहीं पाएगी। इस बार भाजपा यहां से जीतेगी, विकास जीतेगा।

सपा के आजमगढ़ जिले के अध्यक्ष हवलदार यादव का कहना है कि पार्टी ने यहां पर बूथ लेवल से लेकर विधानसभा तक अपनी पूरी तैयारी कर रखी है। भाजपा झूठ के आधार पर राजनीति करती है। जनता सब देख रही है। आने वाले समय में सब पता चल जायेगा।

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