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अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग वाली अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट से वापस ली गई

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली आबकारी घोटाला मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली याचिका पर कोई निर्देश देने से इनकार कर दिया है। उसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसी ही एक याचिका खारिज की जा चुकी है।

कोर्ट ने कहा कि ये मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फैसला करना है कि वो राष्ट्रहित में क्या फैसला करते हैं। व्यक्तिगत हितों से राष्ट्र हित ऊपर रखना चाहिए। सुनवाई के दौरान केजरीवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने कहा कि ये याचिका पहले ही वापस ले लेनी चाहिए थी, क्योंकि ऐसी ही याचिका सुरजीत सिंह यादव की ओर से दाखिल की गई थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

यह याचिका हिन्दू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि अरविंद केजरीवाल को मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया है और वो संविधान के तहत गोपनीयता भंग करने के दोषी हैं। ऐसे में केजरीवाल को संविधान के अनुसार 164 के तहत पद से हटाया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया कि केजरीवाल 21 मार्च को गिरफ्तार किए गए हैं और उस दिन से दिल्ली सरकार की ओर से संविधान के अनुच्छेद 154,162 और 163 का पालन नहीं किया जा रहा है। 21 मार्च से दिल्ली सरकार की कैबिनेट नहीं बैठी है, ताकि वो उप-राज्यपाल को सलाह दे सके और उस पर उप-राज्यपाल कोई फैसला कर सकें।

दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 मार्च को एक ऐसी ही याचिका खारिज कर दी थी। दिल्ली कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि ये कोर्ट का नहीं, कार्यपालिका का काम है। कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई कानून बताइए, जिसमें मुख्यमंत्री के पद से हटाने का प्रावधान हो। कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई संवैधानिक विफलता है तो राष्ट्रपति या उप-राज्यपाल फैसला करेंगे। इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। कोर्ट ने कहा था कि हमने अखबारों में पढ़ा है कि उप-राज्यपाल इस मामले की पड़ताल कर रहे हैं। उसके बाद ये राष्ट्रपति के पास जाएगा।

कोर्ट ने कहा था कि हम ये समझते हैं कि कुछ व्यावहारिक परेशानियां हैं। हम इस पर आदेश क्यों जारी करें। हम राष्ट्रपति या उप-राज्यपाल को निर्देश नहीं दे सकते हैं। कार्यपालिका राष्ट्रपति शासन लगाती है। ये हमें बताने की जरूरत नहीं है। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। हम राजनीति में नहीं जा सकते। राजनीतिक दल इसे देखें। वे जनता के बीच जा सकते हैं, हम नहीं।

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